
भारत में स्ट्रीट डॉग्स यानी आवारा कुत्तों की समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर बड़ा कदम उठाया है। कोर्ट के ताज़ा आदेश के मुताबिक, दिल्ली में अगले 8 हफ्तों के अंदर सभी स्ट्रीट डॉग्स को पकड़कर व्यवस्थित करने का निर्देश दिया गया है।
इसका सीधा कारण हाल के दिनों में रेबीज के मामलों में भारी इजाफा है, जिसने ना केवल स्वास्थ्य विभाग बल्कि आम जनता को भी चिंता में डाल दिया है।
राजनीतिक गलियारों में हलचल
जहां एक तरफ इस आदेश को लेकर कई लोग राहत महसूस कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ डॉग लवर्स और एनिमल एक्टिविस्ट्स इस फैसले के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। सोशल मीडिया से लेकर संसद तक, बहस तेज़ हो चुकी है।
दुनिया कैसे सुलझाती है स्ट्रीट डॉग्स की समस्या?
भारत अकेला देश नहीं है जो इस समस्या से जूझ रहा है। आइए नजर डालते हैं दुनिया के कुछ बड़े देशों में अपनाए गए उपायों पर:
अमेरिका:
यहां Animal Care Centers जैसी संस्थाएं काम करती हैं, जो आवारा जानवरों को शेल्टर होम में रखती हैं। इनके पास रहने, खाने और इलाज की पूरी सुविधा होती है।
कानूनी सुरक्षा भी इन जानवरों को दी जाती है।
ब्रिटेन:
यहां हर साल 36,000 से ज़्यादा स्ट्रीट डॉग्स को लोकल अथॉरिटीज द्वारा हैंडल किया जाता है। कुत्तों को शेल्टर में रखने के साथ-साथ उनकी नसबंदी और टीकाकरण अनिवार्य है।
सिंगापुर:
सिंगापुर में तकनीक का बेहतरीन इस्तेमाल होता है। यहां Microchip Tracking System से कुत्तों की लोकेशन ट्रैक की जाती है। इसके साथ ही नसबंदी और शेल्टर में रखना अनिवार्य है।

लोग इन कुत्तों को आसानी से adopt भी कर सकते हैं।
तुर्किये:
2020 में यहां 40 लाख से अधिक स्ट्रीट डॉग्स थे। सरकार ने कानून लाकर इन्हें शेल्टर में शिफ्ट किया, नसबंदी करवाई और टीकाकरण किया। इसके बाद इन्हें अडॉप्शन के लिए खोला गया।
जापान:
यहां भी लोकल प्रशासन की देखरेख में स्ट्रीट डॉग्स की नसबंदी, टीकाकरण और शेल्टर होम्स की सुविधा है। हालांकि, अगर कोई जानवर अत्यधिक बीमार या आक्रामक हो जाए, तो उसे मारने का भी प्रावधान है।
क्या भारत इनसे सीख सकता है?
भारत में अभी तक सिर्फ कैच-न्युटर-रिलीज़ (CNR) सिस्टम अपनाया जा रहा है, लेकिन यह समाधान काफी नहीं साबित हो रहा। दुनिया भर के उदाहरण दिखाते हैं कि जब तक सुनियोजित शेल्टर सिस्टम, नसबंदी और टेक्नोलॉजी का साथ नहीं लिया जाएगा, तब तक ये समस्या गंभीर बनी रहेगी।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश निश्चित रूप से एक अहम कदम है, लेकिन इसे सिर्फ प्रशासनिक कार्रवाई तक सीमित न रखते हुए, एक समग्र और दयालु दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है। भारत को अब वैश्विक उदाहरणों से सीख लेते हुए स्थायी समाधान की तरफ बढ़ना होगा।
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